Friday, 2 February 2018

फोटोन का इंसान की सोच से रिश्ता




इंसान में सृष्टि द्वारा नियंत्रित एक ऐसा कार्य व्यापार लगातार चलता है, जो उसे  सोचने, समझने और किसी कार्य को अंजाम देने के काबिल बनाए रखता है। यह व्यापार प्राण शक्ति पर निर्भर है। प्राण शक्ति के खत्म होने  के साथ ही यह व्यापार बंद हो जाता है। जैव विज्ञान इंसान की सोचने समझने की ताकत को हमेशा यांत्रिक दृष्टि से देखता आया है। इस ताकत की चर्चा होते ही बात दिमाग पर जाकर अटक जाती है। दिमाग के सभी अंशों के बारे में जानकारी हासिल करने के बावजूद भी जैव विज्ञान यह ता नहीं पाता कि भाव आखिर कैसे और कहाँ अनायास ही पैदा हो जाते हैं। जैसे एक छोटी-सी चींटी के सामने खड़े किसी व्यक्ति को समग्र रूप से देख पाना संभव नहीं हो पाता ठीक उसी तरह खंडों में बंटे विज्ञान और समाज से विच्छिन्न वैज्ञानिक विषयों के लिए भी मानव में कार्यरत सृष्टि के इस विराट व्यापार को समझना असंभव है।

दिलो दिमाग में किसी बात के रिस कर बस जाने की कहानी फोटोन से शुरू होती है। गौर करें कि ‘मृत्यु’ शब्द लिखा हुआ देखकर हमें वैसा अहसास क्यों नहीं होता जैसा कि ‘उत्सव’ शब्द को देखकर होता है? साहित्यिक भाषा में कहें तो शब्दों की आत्मा होती है और इन दोनों शब्दों की आत्मा अलग-अलग होने के कारण ये शब्द अलग अहसास पैदा करते हैं। “वर्णों के सांचे से जुड़े फोटोन व्यक्ति की आंखों में स्थित रेटिना से टकराते हैं और उनकी शक्ति बंदूक से छूटी गोली की तरह रेटिना में स्थित प्रकाश का संधान करने वाले कोषों में विद्युत-संकेत छोड़ते हैं। दिमाग में ये संकेत लहरों की तरह प्रसारित होकर सूत से दिखने वाले एक्ज़ोन में बहते हैं। ये संकेत एक्ज़ोन के अंतिम छोर तक पहुँचकर ‘सिनेपसे’ में रासायनिक न्यूरो ट्रान्समीटर को जन्म देते हैं। सिनेपसे एक्जोन के अंतिम छोर और न्यूरोन (जहाँ तक पहुँचना उस संकेत का लक्ष्य है) के बीच स्थित एक रासायनिक जंक्शन है। इस न्यूरोन को हम गंतव्य न्यूरोन कह सकते हैं। यह न्यूरॉन निजी विद्युत-संकेतों से प्रतिक्रिया व्यक्त करता है जो दूसरे न्यूरॉन तक संकेत भेज देता है। कई सौ मिली सेकेण्ड के भीतर यह संकेत दिमाग के दर्जनों अंतर्संबंधित क्षेत्र से होते हुए अरबों न्यूरॉनों तक पहुँच जाता है।“1 इस पूरी प्राकृतिक प्रक्रिया के बाद भाव और भाषा की कहानी आती है। लिखे हुए शब्द साहित्य, समाज या किसी भी क्षेत्र के हो सकते हैं। फोटोन भौतिक विज्ञान के क्षेत्र का विषय है और दिमाग में स्थित न्यूरॉन जीवविज्ञान, चिकित्साशास्त्र का विषय है। इतने कठघरों में बंटा हमारा ज्ञान भला इंसान के सोचने समझने की शक्ति का समग्र स्वरूप कैसे दिखा सकता है?

इंसान के सोचने समझने की प्रक्रिया में फोटोन की बड़ी भूमिका होती है। “फोटोन विद्युत चुम्बकीय विकिरण की एक ऐसी मात्रा है जिसे साधारणत: प्राथमिक कण कहा जाता है।” 2 इस मात्रा का विकिरण आँखों की पकड़ में नहीं आता। लेकिन सूक्ष्म स्तर पर मौजूद रहकर यह फोटोन समूची संस्कृति को प्रभावित करने की ताकत रखता है। सृष्टि में स्थित यह ऊर्जा विद्यालयों के विज्ञान की किताबों में वर्णित ऊर्जा से एकदम अलग है। इन किताबों में उल्लेखित ऊर्जा के प्रकार वस्तुवादी हैं। अर्थात वस्तु पर किए गए प्रयोगों के आधार पर प्रस्तुत प्रकार हैं। विज्ञान को जबसे ब्रह्मांड की शक्ति से काटकर देखा जाने लगा वह स्तुवादी स्वरूप अख्तियार करता गया। विज्ञान का अर्थ है विशिष्ट ज्ञान। विद्यालय स्तर की किताबों में ही अगर यह विशिष्ट ज्ञान वस्तुवादी सांचे में ढालकर परोसा जाएगा तो इंसान समूचे ब्रह्मांड में सक्रिय उस ऊर्जा को कैसे समझ पाएगा जो उसके भीतर और बाहर दोनों जगह स्थित है। कुम्भ के भीतर और बाहर जल होने की बात को अगर इस बात से मिलाकर देखा जाए तो संत कबीर समाज वैज्ञानिक नज़र आते हैं।

फोटोन के इस वैज्ञानिक सत्य के आलोक में अगर देखें तो यह बात स्पष्ट हो जाएगी कि अश्लील चित्र, जगह-जगह फैली गंदगी, फूहड़ गाने, शहरों में चारों ओर दिखाई देने वाले इश्तेहारों के विज्ञापन किस तरह का फोटोन पैदा कर सकते हैं। इससे इस बात का भी अंदाजा लगाया जा सकता है कि फोटोन संबंधी सचेतनता का अभाव संस्कृति पर कितना भारी पड़ सकता है। दरअसल संस्कृति के निर्माण में फोटोन की बहुत बड़ी भूमिका होती है। साहित्यकार मानवता के समाज से मिटते जाने के लिए आए दिन बाजारवाद पर शाब्दिक बमबारी करते हैं और यहाँ वस्तुवाद विज्ञान की किताबों के जरिए वर्षों से भावी पीढ़ी की आँखों में ऐसी पट्टी बाँधता जा रहा है कि उसे अपने भीतर और पूरे ब्रह्मांड में फैली वह ऊर्जा ही नहीं दिखती जो हर पल उसे प्रभावित ही नहीं कर रही बल्कि उसके आचार, विचार और व्यवहार से उसके भविष्य को भी निर्धारित कर रही है। भावी पीढ़ी की सांस्कृतिक और सामाजिक चेतना के नींव में अगर यह वैज्ञानिक चेतना हो तो प्रगतिशील चेतना से संपन्न नई पीढ़ी तैयार हो सकती है। शेखर जोशी की ‘बदबू’ कहानी का नायक जब कहानी के अंत में हाथ से आने वाली बदबू को सूंघकर निश्चिंत होता है तब उसके भीतर का यही भाव दृढ़ता से प्रकाशित होता है कि जो गलत है उसे गलत या अशोभनीय मानने की ताकत भीतर बची रहे। जिससे हमारे भीतर की ऊर्जा उसका विरोध करने के लिए संघर्षशील रहे। वरना अशोभनीय दृश्यों या वारदातों से पैदा होने वाले फोटोन लगातार निकलकर उन्हीं हालात और दृश्यों को चुपचाप स्वीकार कर लेने वाली मानसिक स्थिति पैदा कर देते हैं। तब भीतर की ऊर्जा दब जाती है। इस ऊर्जा को जगाकर रखने के वैज्ञानिक रास्तों की तलाश आज के युग की बहुत बड़ी मांग बन गई है।

संदर्भ
  1. https://engineering.mit.edu/engage/ask-an-engineer/what-are-thoughts-made-of/
  2. http://www.dictionary.com/browse/photon

जल और विचार का वैज्ञानिक रिश्ता





जल को जीवन की संज्ञा दी जाती है। इसीलिए कहा जाता है कि जल ही जीवन है। यह बात भी प्राय: कही जाती है कि व्यक्ति के जीवन को उसके विचार ही आकार देते हैं। तार्किक दृष्टि से इन दो प्रचलित कथनों के आधार पर जल और विचार के बीच गहरा रिश्ता होने का आभास मिलता है। लेकिन अगर व्यवहारिक तौर पर देखा जाए तो यह बात कुछ अटपटी से लगती है। जल और विचार के बीच रिश्ते की बात में यह बात भी जोड़ी जा सकती है कि सचेतन व्यक्तियों के विचार स्वाभाविक तौर पर समृद्ध होते हैं और उनका जीवन भी प्रेरणादायक ऊर्जा बिखेरता है इसलिए जल, विचार और सचेतनता तीनों के बीच गहरा रिश्ता है। यह कथन व्यवहारिक तौर पर हासिल किए गए अनुभवों के आधार पर देखें तो भले ही अजीब लगे लेकिन विज्ञान के सहारे देखें तो यह सही है।

जल निर्जीव वस्तु जैसा नहीं है। वह प्राणी की तरह प्रतिक्रिया व्यक्त करता है। यह हकीकत डॉ. मसारू इमोटो के प्रयोगों से खुलकर सामने आती हैउनकी जिज्ञासु प्रवृत्ति के चलते उन्होंने विश्व के अलग-अलग स्थलों से जल इकट्ठा करके अनोखे प्रयोकिए। इन प्रयोगों के जरिए यह सच्चाई उभरकर सामने आई कि जल जब जमकर स्फटिक बन जाता है तब उसकी अंदरूनी संरचना में उसका असली स्वरूप उभर आता है। प्राकृतिक पहाड़ी झरने के पानी और किसी ठहरे हुए तालाब के पानी से बने स्फटिक की अंदरूनी संरचना एकदम अलग-अलग होती है। मधुर संगीत या फिर जल के सामने लम्बे समय तक बैठकर की गई प्रार्थना के बाद उस जल के बूंदों को जमाकर जब स्फटिक बनाया गया तब उकी अंदरूनी संरचना हीरे जैसी दिखी। जब दूषित जल या शोरगुल वाले संगीत के स्थल पर रखे हुए जल पर वही प्रयोग करके देखा गया तो उसके स्फटिक की अंदरूनी संरचना व्यवस्थित ही नहीं थी। आश्चर्य की बात तो यह है कि “तुमने मुझे बीमार बना दिया। मैं तुम्हारी जाले लूंगा।” वाक्य लिखकर जब एक पानी से भरे बोतल पर चिपकाया गया और फिर उस बोतल के पानी से स्फटिक बनाकर देखा गया तो उसकी अंदरूनी संरचना में व्यवस्था का अभाव दिखा।

विचार या भावों के जल पर पड़ने वाले असर को समझने के लिए या फिर इनके कारण जल की आणविक संरचना में आने वाले बदलाव का प्रमाण पाने के लिए पानी की बूँदों से स्फटिक बनाकर इसे ‘डार्क फील्ड माइक्रोस्कोप’ के जरिए देखा जा सकता है। इस यंत्र में तस्वीर खींचने की क्षमता होती है।

विचार, भाव और सचेनता जल पर किस प्रकार असर डालते हैं, इसे महसूस करने के लिए कैलिफोर्निया में व्यापक स्तर पर एक प्रयोग किया गयाटोकियो के लगभग दो हजार लोगों के एक दल ने जल के नमूने के सामने अपने सकारात्मक भाव व्यक्त किए। यह नमूना कैलिफोर्निया के विद्युत चुम्बकीय शक्ति से घिरे हुए एक स्थल में रखा था। इस घटना के बाद जल से स्फटिक बनाकर जब उसकी अंदरूनी संरचना की तस्वीर ली गई तो वह हीरे जैसी दिखाई दी। बिल्कुल वही पानी का नमूना जो उस स्थल से बाहर कहीं रखा था, उससे बने स्फटिक की अंदरूनी संरचना व्यवस्थित नहीं थी।

जल पर किए गए डॉ. मसारू इमोटो के प्रयोग मानव में छिपी शक्ति को समझने का एक नया नज़रिया देता है। मानव शरीर में जल का एक बहुत बड़ा अंश मौजूद होता है। इस जल को जब किसी की प्रार्थना या फिर दुआएं या तारीफ छूती है तब उस पर भी वही असर पड़ना चाहिए जो असर डॉ. इमोटो के प्रयोगों में जल पर पड़ता हुआ दिखाई देता है। मानव शरीर के बाहर विद्युत चुम्बकीय क्षेत्र के मौजूद होने का प्रमाण किर्लियन फोटोग्राफी या फिर जी.डी.वी. कैमरे से खींचे तस्वीरों में मिलता है। इसी विद्युत चुम्बकीय क्षेत्र के लिए औरा शब्द प्रचलित है। विद्युत चुम्बकीय क्षेत्र से घिरे मानव शरीर में स्थित जल में डॉ. इमोटो के जल संबंधी प्रयोगों के अनुरूप फल दिखाई देने की आशा तो की ही जा सकती है। पृथ्वी का भी अधिकांश प्रतिशत भाग जल से ही बना है। पूरी पृथ्वी के लिए की गई मंगल कामना या प्रार्थना भी उसके जल पर प्रभाव डाल सकती है। जल पर पड़ने वाला यह प्रभाव मानव को किस तरह प्रभावित कर सकता है यह खोज का विषय है। अक्सर यह कहा जाता है कि पहाड़ी झरने का पानी स्वास्थ्य के लिए अच्छा माना जाता है। इसके कई वैज्ञानिक कारण तो मिलते ही हैं लेकिन प्रकृति के निर्जन स्थलों से बहकर आने वाला यह पानी प्रकृति की नैसर्गिकता का स्पर्श पाने के कारण भी स्वास्थ्यकर होता है, डॉ. मसारू के प्रयोग ऐसा मानने के लिए बुद्धि को खुराक देते हैं।

पानी पर किए गए डॉ. मसारू इमोटो के प्रयोग का सूत्र पकड़कर इस बात की वैज्ञानिक व्याख्या भी दी जा सकती है कि किस प्रकार व्यक्ति के विचार और भाव उसके भविष्य के निर्माण में अहम भूमिका निभाते हैंइस प्रक्रिया में भाव या विचारों का शरीर के जलतत्व के संस्पर्श में आना निश्चित रूप से एक महत्वपूर्ण सोपान है। इससे एक और बात स्पष्ट होती है कि किसी भी भाव का असर भले ही इंसान की नजरों से ओझल रहे लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि असर होता ही नहीं है। बोले गए शब्द, यहाँ तक कि लिखे गए शब्दों से संबंधित फोटोन* अणु की संरचना में परिवर्तन ला सकते हैं। पृथ्वी की हर चीज़ अणु से बनी है। अणु में स्थित इलेक्ट्रॉन की गति विद्युत चुम्बकीय शक्ति तैयार करने की ताकत रखती है और यह शक्ति दूसरे अणु को भी प्रभावित कर सकती है। कण-कण में ईश्वर के होने का इससे बड़ा उदाहरण और क्या हो सकता है? प्रार्थना, सकारात्मक विचार और संगीत के प्रति जल कणों में स्थित ईश्वर किस तरह प्रतिक्रिया व्यक्त करता है ह इन चित्रों में देखा जा सकता है।

 यह ईश्वर ऊर्जा ही है।

*फोटोन - “फोटोन विद्युत चुम्बकीय विकिरण की एक ऐसी मात्रा है जिसे साधारणत: प्राथमिक कण कहा जाता है।”  http://www.dictionary.com/browse/photon

Saturday, 27 January 2018

THE SCIENTIFIC RELATION BETWEEN WATER AND THOUGHT





‘Water is life ' and 'We are what our thoughts have made us' are two very common sayings. Actually our thoughts shape up our life. If water is life then logic says that there must be a relation between water and thought. Consciousness enriches our thoughts. So, finding relation between water and consciousness also seems to be logical. There is a scientific relationship between three concepts mentioned above. 

Water is alive. It responds to thoughts and emotions. This reality is revealed by the experiments of Dr. Masaru Emoto, who collected samples of water from different parts of the world. He discovered that water reveals its true nature in frozen crystal form. The water of the waterfalls of remote hill areas and the stagnant water show different crystal form when frozen. Water exposed to meditating or healing music or prayer formed beautiful crystalline structure, whereas the water crystals of that water seemed to be deformed and distorted which was filled in a bottle and the words of negative feeling was pasted on it. This crystalline structure of frozen water could be examined under a dark field microscope that has photographic capabilities.

The power of thought was realized by the beautiful image of the crystalline structure of that water sample which was frozen after it was exposed to positive intentions of approximately 2000 people inside an electromagnetically shielded room in California.

Dr. Masaru Emoto's experiments on water presents a new perspective to understand the power hidden in human beings. Human body contains more than 60% of water content. If this water content of human body gets the blissful touch of prayers and appreciation it must respond in the same way as the water responded in Dr. Masaru Emoto's water experiments. Our planet earth also contains more than 60%of water. It can also respond to the prayers for the well being of the earth. 

The water of the waterfalls of remote hill areas are said to be healthy for many reasons. Its closeness to pure natural environment can also be one of the reasons of its healthy feature. 
Holding the string of Dr. Emoto's experiments, it is possible to present the scientific explanation of the phenomenon that, how the thoughts and emotions of an individual play a significant role in making of the future of an individual. In this phenomenon the thoughts and emotions definitely lay an effect in the water content of human body. This phenomenon reveals that, the effect of a thought may stay invisible to human eyes but it never means that it doesn't exist. The photons* associated to the patterns of written words or the vibration of spoken words can bring change in the nature of atoms. Everything in this earth is made of atoms.  The moving electrons in an atom can create electromagnetic field. This field can affect the atoms of other mass or body. This could be a better example of presence of God in every tiny bit of the universe. The following pictures show that how the God residing in water responds to the prayers, positive thoughts and music of patriotism.



Reference:  http://themindunleashed.com/2013/07/the-power-of-our-thoughts-on-water.html


*Photon : a quantum of electromagnetic radiation, usually considered as an elementary particle that is its own antiparticle and that has zero rest mass and charge and a spin of one. http://www.dictionary.com/browse/photon